NOTES TO MYSELF
Saturday 28 November 2015
शबाब आया किसी बुत्त पर फ़िदा होने का वक़्त आया
मेरी दुनिया में बन्दे के खुदा होने का वक़्त आया
हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम
यानी हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया
:हरी चंद अख्तर
देता है ज़िन्दगी क्यों तू ,क्यों मुझमे तू मिलता नहीं
देता है ऐसा सफर क्यों, हैं मंज़िलें जिनकी नहीं
कह दे खुदा है कैसा खुदा तू ,जो बस में तेरे कुछ भी नहीं
कोई तो वजह होगी जो यूँ मजबूर तू भी कहीं
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