गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कि कुछ लोग पहचाने गए
मैं इसे शोहरत कहूँ कि अपनी रुसवाई कहूँ
मुझसे से पहले गली में मेरे अफ़साने गए
वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गयीं
हम जहाँ पहुंचे अपने साथ वीराने गए
अब भी उन यादों की खुशबु ज़ेहन में महफूज़ है
बारहा हम जिन से गुलज़ारों से महकाने गए
खातिर गजनवी