Friday 2 October 2015

NAYA RISHTA

नया एक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यूँ करें हम
ख़ामोशी से अदा हो रस्म ए दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम
यह काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यूँ करें हम
.........
हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम
.....
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की क्यूँ परवाह करें हम
...........
हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यूँ करें हम
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीन का बोझ हल्का क्यूँ करें हम


JON ILIYA

No comments:

Post a Comment