NOTES TO MYSELF
Wednesday, 15 July 2015
Phir Kuch Is Dil Ko Beqarari Hai
फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है
सीना ज़ोया- ऐ-ज़ख्म-ए-कारी है.
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं ग़ालिब
कुछ तो है जिसकी परदादारी है.
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