Friday 2 October 2015

ज़रा सी बात

गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कि कुछ लोग पहचाने गए
मैं इसे शोहरत कहूँ कि अपनी रुसवाई कहूँ
मुझसे से पहले गली में मेरे अफ़साने गए
वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गयीं
हम जहाँ पहुंचे अपने साथ वीराने गए
अब भी उन यादों की खुशबु ज़ेहन में महफूज़ है
बारहा हम जिन से गुलज़ारों से महकाने गए

खातिर गजनवी 

NAYA RISHTA

नया एक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगडा क्यूँ करें हम
ख़ामोशी से अदा हो रस्म ए दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम
यह काफी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफादारी का दावा क्यूँ करें हम
.........
हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम
.....
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की क्यूँ परवाह करें हम
...........
हैं बाशिंदे इसी बस्ती के हम भी
सो खुद पर भी भरोसा क्यूँ करें हम
पड़ी रहने दो इंसानों की लाशें
ज़मीन का बोझ हल्का क्यूँ करें हम


JON ILIYA