Thursday, 25 February 2016

यह न थी  हमारी किस्मत के विसाले यार होता

अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता

तेरे वादे पे जिए हम तो यह जान झूट जाना

के ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे नीमकश को

ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

कहूँ किस से मैं के क्या है शब्-ए –गम  बुरी बला है

मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता 



:मिर्ज़ा ग़ालिब 

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