बीता साल कुछ ऐसे गुज़ारा मैने।
अल्फाज़ बेच दिये खामोशी खरीद ली।
यूँही निकल पड़े ज़िंदगी से उलझने।
हंसी अपनी बेचकर थोड़ी खुशी खरीद ली।
सुकून देते थे सन्नाट्टे बहुत मुझे।
साथ सबका बेचकर कर तन्हाई खरीद ली।
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