Wednesday, 23 October 2019

हम बड़े हो गए।

हम बड़े हो गए।
हम बड़े हो गए।
मुस्कुराहट,तबस्सुम, हंसी, कहकहे
सब खो गए।
हम बड़े हो गए।
ज़िम्मेदारी मुसलसल निभाते रहे।
बोझ औरों का खुद ही उठाते रहे।
अपना दुख सोचकर रोये तन्हाई में।
महफिलों में मगर मुस्कुराते रहे।
कितने लोगों से अब मुख्तलिफ हो गए।
हम बड़े हो गए।
और कितनी मसाफत है बाकी अभी।
ज़िन्दगी की हरारत है बाकी अभी।
वो जो हमसे बड़े हैं सलामत रहें।
उन सभी की ज़रूरत है बाकी अभी।
जो थपक कर सुलाते थे,खुद सो गए।
हम बड़े हो गए।
जाने कब आयी,कब जवानी हुई।
खत्म होने को अब ज़िन्दगानी हुई
जो हक़ीक़त थी अब वो कहानी हुई।
मंज़िलें मिल गयीं हमसफर खो गए।
देखते देखते क्या से क्या हो गए।
हम बड़े हो गए।

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-मत पूछना दोस्तों यह अशआर किसके हैं।
जो महसूस कर सके ये ख्यालात उसके हैं

1 comment:

  1. Tribute to the author who probably would rather remain unknown.Edits and last couplet are my misadventures

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