Tuesday 2 September 2014

RISHTA


 
तुमसे जब पहली बार मुलाक़ात हुई  अरसे बाद धीमी सी बरसात हुई
नशा कुछ तुम्हारी ख़ामोशी का हुआ दिल पर असर कुछ उस मुलाक़ात का हुआ
दिल को तुम्हारी आहट की आस रहने लगी निगाह को तेरी सूरत की प्यास रहने लगी
तेरे बिना ज़िन्दगी में कमी तो नहीं फिर भी तेरे बिना थोड़ी उदास रहने लगी
क्या था ये क्यों था ये  न तुम को समझ आया न जानता था मै
पर गुनगुना नहीं सकता था वोह तराना मै, जानती थीं तुम जानता था मै,
तुम्हे जवाब चाहिए थे मैं सवाल की तलाश में था
तुम्हे प्यार चाहिए था मै साहिल की तलाश मे था
तुम्हे ठ्हेराव चाहिए था मै बहाव की तलाश में था
ख़ुशी की दरकार में तुम थी मैं सुकून की तलाश में था
साथ चाहिए था तुम्हे उम्र भर का मै तनहाइयों के आगोश में था
गैरों की बाँहों का गैरज़रूरी सहारा क्यों लेता हूँ मैं
शायद खुद से भागने की फ़िराक में हूँ
तुम्हे दर्द देता है यह मेरा दर दर भटकना
क्या बताऊँ तुम्हे खुद से मिलने की तलाश में हूँ
क्यों है यह आवारापन और बंजारापन रास्ता मेरा
अपने नसीब के दिखाए रास्ते के ऐहेतराम में हूँ
मैं वोह ख्वाब नहीं जो तुम्हारी आँखों में होना चाहिए
न वोह धड़कन जो तुम्हारे दिल का साज़ बने
मैं एक मुश्त ऐ गुबार हूँ दिल की दुनिया मे
कोई खुशनसीब ही तुम्हारा राजदार बने
पर फिर भी-
कोई ऐसे चाहे किसी को जैसे तुम मुझे चाहती हो
कोई ऐसे जाने किसी को जैसे मै तुम्हे जानता हूँ
पता है क्यों है ऐसा –
 क्योंकि मोहब्बत से बड़ा रिश्ता है मेरा और तुम्हारा
दर्द का हाँ दर्द का ये  रिश्ता है मेरा और तुम्हारा
 
 
 
 

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