Saturday, 28 June 2014

KHUSHI


बस दोस्तों की थोड़ी मेहेरबानी रहे

और खून में अपने रवानी रहे

जवानी तो चाहे रहे न रहे

यह ज़िन्दगी खुशियों की कहानी रहे

UMMEED


कागज़ की कश्ती जो छूटी तो छूटी,उम्मीदों की हस्ती जो टूटी तो टूटी

अंधेरों से लड़ते यह जीवन के पल,,कल यादों के सागर में ढल जायेंगे

हौसलों से बढ़ते यह अपने क़दम ,मुस्कुराहटों के सबब बन जायेंगे

अपने हाथों में फिर किसी का हाथ होगा,उम्मीदों का दिलों में फिर साथ होगा

HAMSAFAR EK MANZIL KE


चाहत है तो दूरियां क्यों हैं, मिलना हैं तो मजबूरियां क्यों हैं

अपनापन है तो क्यों हैं शिकवे गिले, मन है तो क्यों न मिले गले

जो कहना है सब कहो,क्या पता कल हो न हो

यह समाज की दकियानूसियाँ ,यह गली के कोने पर कानाफूसियाँ

यह घरवालों का जज्बाती होना,यह कमरे में छुप छुप के रोना

कहाँ होगा यह समाज, जब ज़िन्दगी करेगी मजबूर

या यह तथाकथित अपने ,जब होगी तुम गम से चूर

जब बंजारा चला जाएगा हार के,तो कौन होगा जो कहेगा प्यार से

चलो एक कोशिश और की जाये,नयी मंजिलों की तलाश और की जाये

जब सफ़र में थक जायेंगे ,बरगद के किसी दरख़्त के नीचे थोड़ी देर रुक जायेंगे  

पर न हारेंगे,न झुकेंगे न रुकेंगे ,दिखयेंगे एक दिन शान से

फ़ौज के सिपाही नहीं, सिकंदर खड़ा होता है सामने आन से

शायर कहेगा तुम्हारे लिए एक दिन-

बढे चलो की ज़ुल्मत्कदों से तुम्हारा काम नहीं,

चिरागे सहर हो तुम,कोई आफ़ताबे शाम नहीं

MOHABBAT


रातों को सोता हूँ तो  ख्वाबों में तुम हो

सुबह उठता हूँ तो पहले ख्यालों में तुम हो

दीवानों सी हो चली है हालत मेरी

इस पूरे समा में तुम हो

इस पूरी कायनात में तुम हो

BECHAARA


मैं बेचारा नहीं

दिल तो टूटा है गम से हारा नहीं

मैं बेचारा नहीं

रिश्ते भी झूटे हाथ भी छूटे

वादे भी टूटे

प्यार का मारा नहीं

मैं बेचारा नहीं

DHIKKAR HAI


जिन पंखों में जान नहीं ,जिन दिलों में उड़ान नहीं,

जिन आँखों नें ना सपने देखे,ना सही मायनों में अपने देखे

जो दोस्तों को पहचान ना पाए ,जो कुदरत का इशारा जान ना पाए

ऐसी जिंदगियों का होना न होना बेमानी है ,ऐसी लहरें तो आनी जानी हैं

धिक्कारता हूँ उन फैसलों को,जो ज़िन्दगी को नकारते हैं,

शर्मसार हूँ उन लोगों पर ,जो सिर्फ मदद को पुकारते हैं

याद रखना ऐ दोस्त,

जिन नावों की पतवार नहीं होती,उनकी किस्मत का फैसला लहरों पर होता है.

Saturday, 21 June 2014

JUDA HO GAYE


वोह हमसफ़र था मगर उससे हम्नावाई न थी

की धूपछांव का आलम रहा जुदाई न थी

अदावतें थीं  तवाकुल था  रंजिशें थी मगर

बिछड़ने वाले में सबकुछ था बेवफाई न थी

किसे पुकार रहा था वोह डूबता हुआ दिन

सदा तो आयी थी कोई दुहाई न थी

बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी  हमारी ग़ज़ल

ग़ज़ल भी वोह जो किसी को अभी सुनाई न थी

      -ANONYMOUS

SHAMSHAN VAIRAGYA-1


कोहनियों पर टिके हुए लोग ,

सुविधाओं पर बिके हुए लोग.

बरगद की बात करते हैं ,

गमलों में उगे हुए लोग.
-ANONYMOUS

Friday, 13 June 2014

नसीब से क्या शिकवा ,बदकिस्मती से क्या गिला 


जो लिखा था वही मिला,जो लिखा था वही मिला।