Saturday 28 June 2014

HAMSAFAR EK MANZIL KE


चाहत है तो दूरियां क्यों हैं, मिलना हैं तो मजबूरियां क्यों हैं

अपनापन है तो क्यों हैं शिकवे गिले, मन है तो क्यों न मिले गले

जो कहना है सब कहो,क्या पता कल हो न हो

यह समाज की दकियानूसियाँ ,यह गली के कोने पर कानाफूसियाँ

यह घरवालों का जज्बाती होना,यह कमरे में छुप छुप के रोना

कहाँ होगा यह समाज, जब ज़िन्दगी करेगी मजबूर

या यह तथाकथित अपने ,जब होगी तुम गम से चूर

जब बंजारा चला जाएगा हार के,तो कौन होगा जो कहेगा प्यार से

चलो एक कोशिश और की जाये,नयी मंजिलों की तलाश और की जाये

जब सफ़र में थक जायेंगे ,बरगद के किसी दरख़्त के नीचे थोड़ी देर रुक जायेंगे  

पर न हारेंगे,न झुकेंगे न रुकेंगे ,दिखयेंगे एक दिन शान से

फ़ौज के सिपाही नहीं, सिकंदर खड़ा होता है सामने आन से

शायर कहेगा तुम्हारे लिए एक दिन-

बढे चलो की ज़ुल्मत्कदों से तुम्हारा काम नहीं,

चिरागे सहर हो तुम,कोई आफ़ताबे शाम नहीं

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