वोह हमसफ़र था मगर उससे हम्नावाई न थी
की धूपछांव का आलम रहा जुदाई न थी
अदावतें थीं तवाकुल था रंजिशें थी मगर
बिछड़ने वाले में सबकुछ था बेवफाई न थी
किसे पुकार रहा था वोह डूबता हुआ दिन
सदा तो आयी थी कोई दुहाई न थी
बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी
ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वोह जो किसी को अभी सुनाई न थी
-ANONYMOUS
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