मैं भी कुछ चुप सा हूँ तुम भी कुछ गुमसुम हो 
ख्यालों में खोया हुआ हूँ मैं ,ख्यालों में खोई तुम हो
क्या चाहती हो तुम खबर नहीं है मुझे
कोशिश बहुत की जानने की और सब्र नहीं है मुझे
दर्द दिल का सम्हलता नहीं है
सच क्या है पता चलता नहीं है
शाम-ऐ गम की क्या कभी सहर नहीं होती  
या शायद  हमी को खबर नहीं होती 
जिस्मों ने बात की क्या कोई दोष हमारा था 
कुछ मेरी दिलेरी थी  कुछ इशारा
तुम्हारा था  
पर अब इस रुख ने तुम्हारी  चाहत पर
सवाल उठाया है
क्या वाकई इश्क है या किसी और जज्बे का सरमाया है 
क्या खून के रिश्ते हर ओछेपन को सही  बना सकते हैं 
क्या सचाई के फ़रिश्ते  उस घटियापन के आगे
 सर झुका सकते हैं 
अगर हाँ तो तोड़ो दिल मेरा और कह दो मुझसे
बस साथ यहीं तक था  अब और नहीं होगा
तुमसे
साथ तो वैसे भी ज्यादा तै नहीं था 
चार क़दम से आगे का वादा नहीं था 
पर  इस शर्त पर वो मंज़ूर नहीं मुझे 
अलविदा होना है तो उससे गुरेज़ नहीं मुझे 
तुमने तो कहा ही था की साथ न दे पाओगी
[माँगा नहीं था वैसे ]
पता न था कि चार कदम में भी लड़खड़ाओगी
तुम्हारा कहना की इतना न चाहो मुझे, बड़ा दिल को सालता है
यह चार सौ पच्चीस ग्राम मोहब्बत दिल में कौन पालता है 
इस अजीब मोहब्बत का बड़ा खूबसूरत पैगाम  भी हो सकता था
हर नस में प्यार के शरारे भर जाने का अंजाम भी हो सकता था 
कहती अभी भी हो तुम की सब तुम्हारे हाथ में है 
क्या पता भी है कि एक नायब जज्बा तुम्हारे साथ में है
मोहब्बत से ऐसी मुलाक़ात शायद न कर सकोगी
साथ तो मिलेगा तुम्हे ,दिल को ऐसे न भर सकोगी
पर जैसा मैंने कहा-
फैसले कल भी तुम्हारे थे फैसले आज भी तुम्हारे हैं 
हम तो कल भी हारे थे हम तो आज भी हारे हैं 
जाना तो था  ही एक दिन तो आज ही सही 
बस अब कभी नहीं कभी नहीं कभी नहीं .
 
