Tuesday 1 July 2014

KYON


कोई उम्मीद नज़र नहीं आती

मौत तो यकीनी है पर उससे पहले

रूह की धड़कन क्यों नज़र नहीं आती

प्यार की राह पर चले मगर उनकी नज़रों में
मोहब्बत क्यों नज़र नहीं आती

सच की मशाल रोशन की पर किसी की निगाह में

सच्चाई क्यों नज़र नहीं आती

तलाश थी एक सच्चे हमनवां की ,पर किसी भी दिल में

ईमानदारी क्यों नज़र नहीं आती

ख्वाब हैं की नज़रों में उतरे चले जाते हैं पर

उनकी ताबीर क्यों नज़र नहीं आती

ऐ ज़िन्दगी अपना पता तो बता दे

रात भर भटके हैं तू कहीं नज़र नहीं आती

कोई उम्मीद नज़र नहीं आती

1 comment:

  1. Good poem, You have used rhyming scheme in a much better way. In earlier poems it was missing..But this one is better.

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